स्टार रेटिंग | 4.5/5 |
स्टारकास्ट | आयुष्मान खुराना, ईशा तलवार, मनोज पाहवा, कुमुद मिश्रा, सयानी गुप्ता और मोहम्मद जीशान अयूब |
निर्देशक | अनुभव सिन्हा |
निर्माता | अनुभव सिन्हा, जी स्टूडियोज |
जॉनर | क्राइम थ्रिलर |
अवधि | 130 मिनट |
बॉलीवुड डेस्क. डायरेक्टर अनुभव सिन्हा की फिल्म आर्टिकल 15 जातिवाद को दर्शाने का एक बेहतरीन और दिलचस्प दृष्टिकोण है। भारत में हम कई क्षेत्रों में प्रगति कर रहे हैं, लेकिन समाज में अब भी जाति, धर्म और लिंग को लेकर ज्यादिती होती है। फिल्म इस बात का बेधड़क पर्दाफाश करती है। यह फिल्म इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह वो सब बताती है, जिनके बार में लोग दिखाने या बात करने से भी हिचकिचाते हैं।
देश में जाति को लेकर हो रहे भेदभाव को सिन्हा थ्रिलिंग कहानी के जरिए बखूबी बताते हैं। ईमानदार आईपीएस ऑफिसर अयान रंजन (आयुष्मान खुराना) का तबादला लालगांव में जाता है। पद संभालते ही उन्हें पता चलता है कि गांव की तीन लडकियां गायब हैं। उसे यह देखकर ताज्जुब होता कि उसके सह-कर्मचारी (मनोज पाहवा और कुमुद मिश्रा) को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि लड़कियां मिल नहीं रहीं। जब उनमें से दो लड़कियां पेड़ से लटकी पाई जाती हैं तो अयान और परेशान हो जाता है।
उसे धीरे-धीरे पता चलता है कि लड़कियां छोटी जाति की हैं। इसलिए उनके साथ हुए दुष्कर्मों के खिलाफ कोई इंसाफ नहीं मांगना चाहता। अयान न्याय के लिए लड़ना चाहता है
और तीसरी लड़की को ढूंढ निकालना चाहता है, लेकिन आसपास की परिस्थितियां उसके हाथ बांध देती हैं।
सिन्हा ने पहले मुल्क डायरेक्ट की थी, जो धर्म के कारण होने वाले भेदभाव पर जोर डालती है। अब उन्होंने जातिवाद के खिलाफ बहुत ही दिलचस्प कहानी लिखी है। सिन्हा के साथ मिलकर लिखा गया गया गौरव सोलंकी का स्क्रीन्प्ले डार्क विषय को भी हास्य और दमदार डायलॉग्स के जरिए मनोरंजक बनाए रखता है।
सिनेमैटोग्राफी और बैकग्राउंड म्यूजिक की खासतौर पर तारीफ करनी चाहिए। सिनेमैटोग्राफी इवान मुलिगन ने की है और बैकग्राउंड म्यूजिक मंगेश धकड़े का है। दोनों विषय के हिसाब से सटीक हैं और फिल्म बेहतरीन बनाते हैं।
फिल्म की मजबूत कड़ी इसकी स्टारकास्ट भी है। सिन्हा ने काफी अच्छे एक्टर्स को चुना है। आयुष्मान अयान के किरदार में एकदम फिट बैठते हैं। उन्होंने बेहद ईमानदारी से अपना किरदार निभाया है। मनोज पाहवा, कुमुद मिश्रा जैसे बेहतरीन एक्टर्स को रोचक किरदार दिए गए हैं और उन्होंने इन्हें बखूबी निभाया है।
ईशा तलवार और सयानी गुप्ता ने अच्छा काम किया है। मोहम्मद जीशान अयूब एक छोटे, लेकिन पावरफुल किरदार में हैं। वो निषाद के रोल में हैं, जो कि बागी होकर जातिवाद के खिलाफ लड़ता है। उन्होंने जबर्दस्त काम किया है।
यह फिल्म जरूर देखें, क्योंकि यह समाज को आइना दिखाती है। फिल्म सच दिखाने से नहीं कतराती, इसलिए ऐसी फिल्मों को बढ़ावा देना चाहिए।
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